Wednesday 13 December 2017

गुजरात में विकासवाद बनाम जातिवाद बनाम आरक्षणवाद: एक विश्लेषण

संदीप कुमार मिश्र: गुजरात में आज भी (सीएम से पीएम बनने के बाद भी) नरेंद्र मोदी पहली पसंद है,लेकिन गुजराती स्थानीय नेताओं से परेशान और नाराज हैं।वहीं राहुल बाबा पसंद तो आ रहे हैं लेकिन उनके लोग आम लोगों के बीच से नदारत हैं।खैर बड़ा दिलचस्प रहा है इस बार का गुजरात चुनाव।इसका कारण ये भी हो सकता है मोदी के पीएम बनने के बाद गुजरात का चुनाव रोमांचक हो गया है।क्योंकि तमाम ऐसे शब्दवाणों से जनता को रुबरु होना पड़ा जो शायद अब तक नहीं था,इतना ही नहीं तीन युवा नेताओं की तिकड़ी ने मुकाबले को और रोमांचक बना दिया।

गुजरात की राजनीतिक जमीन के बारे में विश्लेषण करना ठीक वैसा ही है जैसे समंदर की रेत पर कुछ लिखना..जिसे लहरें कब मिटा दें पता नहीं..ऐसे में लेखनी में इमानदारी और निष्पक्षता भी होना नितांत जरुरी है।खैर इस बार गुजरात चुनाव में देश की सर्वोच्च सत्ता पर बैठे देश के प्रधान सेवक जरुर ये समझ बैठे कि उनका विजय रथ अन्य राज्यों कि तरह गुजरात में भी जारी रहेगा(क्योंकि गुजरात उनका गृह राज्य है जहां 22 साल से बीजेपी की सत्ता है) लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आता गया वैसे-वैसे मोदी जी को एहसास होता गया कि गुजरात की जमीन पर उतरे बगैर कहानी खराब हो सकती है,क्योंकी बीजेपी नेताओं के प्रति लोगों में बेहद नाराजगी है।उपर से तीन की तिकड़ी और राहुल का दांव कहीं खुद के प्रदेश में छिछालेदर ना करवा दे।क्योंकि सभी नेता ये मान बैठे थे कि मोदी जी आएंगे और वो चुनाव आसानी से जीत जाएंगे।ऐसे में जनता की अनदेखी करने में बीजेपी नेताओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

बहरहाल मोदी जी को मैदान में कप्तानी पारी खेलने के लिए उतरना पड़ा और लगातार एक के बाद एक धुंआधार रैली ने माहौल बनाना शुरु कर दिया।...लड़ाई कांटे की थी...क्योंकि विरोधी दल भी सत्ता का स्वाद चखने के लिए बेचैन था।यानी राहुल गांधी हारते-हारते इतना थक चुके थे कि गुजरात में सत्ता पाकर जीत का स्वाद चखना चाहते थे।ये अलग बात थी कि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था और पाने के लिए शुरुआत करनी थी...अब चाहे इसके लिए राहुल गांधी को तीन गुजराती लड़कों(हार्दिक,अल्पेश,जिग्नेश)की बैसाखी का सहारा ही क्यों ना लेना पड़े।

नरेंद्र मोदी जी के साथ अच्छी बात ये थी कि गुजराती जनता उनको सुनना चाहती है,चाहे वो कोई वर्ग हो।जनता उनको पसंद करती है,आप कही भी चले जाईये उनको पसंद करने वालों की भीड़ आपको मिल ही जाएगी। बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं और युवा हर वर्ग में एक बड़ी तादाद में लोग मोदी जी को गुजरात का नायक मानते हैं।

लेकिन इस बार के चुनाव में मोदी जी से सीधे गुजराती जुड़ नहीं पा रहे थे कारण चाहे जो भी हो(जिसमें सुरक्षा का कारण सबसे बड़ा है)।दरअसल मोदी की रैलियां जिस प्रकार से हो रही हैं वो किसी शो से कम नहीं है,यही वजह है कि गुजराती जुड़ नहीं पा रहे हैं।मोदी जी मंच से गरीबों के हक की बात तो कर रहे हैं लेकिन मोदी का मंच गरीबों से नहीं जुड़ पा रहा है,मोदी ने गरीबों के कल्याण की बात तो की लेकिन रैलियों में गरीब नदारत रहे।आप कह सकते हैं कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं इसमें जो सबसे बड़ा कारण नजर आ रहा है वो ये कि स्थानिय नेताओं ने आवाम की खुब उपेक्षा की।तभी तो लोग मोदी जी को नहीं लेकिन मोदी जी के लोगों को सबक सीखाना जरुर चाहते है। लोग बीजेपी की सरकार तो चाहते हैं लेकिन सत्तासीन घमंड़ी नेताओं को सबक भी सीखाना चाहते हैं।

इसके उलट राहुल गांधी की बात करें तो उनकी सभाओं में भीड़ दिख रही है,लोग नारे भी लगा रहे हैं, आगे बढ़ने की बात भी कर रहे है।और तो और मंदिर-मंदिर भी घूमते हुए राहुल गांधी नजर आ रहे हैं।आप कह सकते हैं कि एक तरफ जहां पीएम मोदी के प्रचार का अंदाज शाही है तो राहुल बाबा एकदम आम आदमी की तरह दिखने में लगे हुए हैं और अपनी कमियां भी जनता को बता रहे हैं कि आखिर क्यों कांग्रेस जनता से दूर होती चली गई।

इतना ही नहीं राहुल गांधी मंच से उद्योगपतियों पर हमला भी जमकर बोल रहे है। मोदी और उद्योगपतियों के रिश्तों की बात कर रहे है तो अमित शाह के बेटे की कंपनी की हवाई तरक्की का जिक्र भी कर रहे है। ये अलग बात है उनकी इन बातों पर जनता को कोई फर्क नहीं पड़ रहा।हां आप अगर गांव में जाते है तो किसानों के मुंह से कांग्रेस के लिए सुकून भरी बातें जरुर सुनने को मिल जाएंगी।लेकिन कांग्रेस के साथ विडंबना है कि गुजरात में उनके पास नेता नहीं है।विगत 22 सालों में कांग्रेस ने गुजरात में ना तो कोई नेता पैदा किया,ना ही अचानक किसी चमत्कार की उम्मीद है।

लेकिन सत्ता के लिए सियासत में कुछ भी संभव है तभी तो कांग्रेस को गुजरात में किसी चमत्कार की उम्मीद है क्योंकि सत्ता विरोध में तीन मुखर आवाजों ने,तीन युवा चेहरों नें कांग्रेस के लिए फिलहाल संजीवनी का काम किया है(जब तक वोटो की गिनती नहीं हो जाती है)।क्योंकि कांग्रेस की अपनी तो उम्मीदें गुजरात में कुछ बची नहीं है वो तो बस जिग्नेश, अल्पेश जो कि अब कांग्रेस में हैं और पाटिदार नेता हार्दिक पटेल पर टिकी हैं।

इस बार गुजरात चुनाव में जो बात सबसे ज्यादा मुखर होकर सामने आई वो थी जातिवाद और आरक्षण।जिसका राहुल गांधी पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। पाटीदार समाज, ठाकोर समाज और दलित समाज के दम पर कांग्रेस अपनी नाव पार लगाना चाहती है।

अंतत: अब देखना दिलचस्प होगा कि गुजरात में विकास बनाम जातिवाद बनाम आरक्षण बनाम...बनाम...बनाम में जनता किसे सत्ता सौंपती है।अफसोस रहेगा तो इस बात का कि जो जातिवाद खत्म होना चाहिए था उसकी आग में भविष्य में एक और राज्य झुलस उठेगा।काश: इस आग को जलने से पबले ही बुझा दिया जाए क्योंकि ये जातिवाद और आरक्षण हमारे समाज में समानता-असमानता,गरीबी अमीरी की खाई को और बड़ा कर देगा।


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