Friday 7 July 2017

यूपी की शिक्षा व्यवस्था त्राहिमाम त्राहिमाम ! कैसे कहें स्कूल चलें हम...?

संदीप कुमार मिश्र :  किसी भी सभ्य समाज की पहचान का सबसे बड़ा आधार वहां के शिक्षित लोग होते हैं वहां की शिक्षा व्यवस्था होती है।राष्ट्र निर्माण की पहली इकाई ही हमारी शिक्षा व्यवस्था है...क्योंकि निंव की मजबूती से इमारत के भविष्य की कल्पना की जाती है।
हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था में अनगिनत कमियां आप को देखने को मिल जाएगी...खासकर सरकारी विद्यालयों की...एक आम नागरीक बड़ी मजबूरी में ही अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजता है...अन्यथा उसका प्रयास यही रहता है कि वो अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में भेजे...।
दरअसल इसके पीछे की सच्चाई बड़ी डरावनी और भयानक है...किसी भी सभ्य समाज और राष्ट्र के लिए अभिशाप है ऐसी सिक्षा व्यवस्था...हम जानते हैं कि केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत हारों हजार करोड़ रुपये शिक्षा व्यवस्था के लिए आवंटित करती है...लेकिन देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था पर आई CAG की रिपोर्ट अति दयनिय और भयानक है।
इस CAG रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में, साल 2011 से 2016 के बीच 8वीं कक्षा तक जाते जाते1 करोड़ 21 लाख 29 हज़ार 657 बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया।
आपको यकिन कर पाना मुश्किल होगा कि पिछले 6 वर्षों में प्रदेश की पूर्व सरकारें 6 लाख बच्चों को किताबें उपलब्ध करवाने तक में नाकाम रही हैं इतना ही नहीं पिछले 6 वर्षों में तकरीबन 97 लाख बच्चों को स्कूल की यूनिफॉर्म तक उपलब्ध नहीं करवाई गई।
इस खोखली शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती CAG रिपोर्ट ये भी लिखा है कि उत्तर प्रदेश के 57 हज़ार 107 स्कूलों की अब तक बाउंड्री भी नहीं हुई है जो कि सुरक्षा व्यवस्था के लिए अति आवश्यक है।वहीं 50 हज़ार 849 स्कूलों के पास अपने खेल के मैदान तक नहीं है ना ही 35 हज़ार 995 स्कूलों में अपनी लाइब्रेरी।हद तो तब हो जाती है जब रिपोर्ट में ये कहा जाता है कि 2 हज़ार 978 स्कूलों में पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं है...।

जरा कल्पना किजिए हम कैसे भारत का निर्माण कर रहे हैं...?

केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद देशभर में स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय बनाने की मुहिम चल रही है,बावजूद इसके उत्तर प्रदेश के 1 हज़ार 191 स्कूलों में लड़कों के लिए और 543 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की सुविधा अब तक नहीं है।
ऐसे में कैसे स्कूल चलें हम..काहें अपने बच्चे को स्कूल भेजे हम...वो भी सरकारी स्कूल में...जहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं।शायद यही वजह है कि 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी की बदहाल शिक्षा व्यवस्था को देखकर कहा था कि यूपी के अधिकारियों, नेताओं और जजों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि सरकारी शिक्षा पद्धति में सुधार लाया जा सके।अपनी सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए कोर्ट नें यहां तक कहा कि जो सरकारी कर्मचारी इस आदेश का पालन नहीं करता उसके ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई भी की जाए।
लेकिन ये बेशर्म सिस्टम और व्यवस्थाएं कहां सुधरने वाली है...जब तक सियासत में सत्ता का मोह बना रहेगा तक शिक्षा,समाज का भला कैसे होगा कोई नहीं जानता...ना जाने कब हम जात धर्म सम्प्रदाय की भावना से उपर उठकर सोचेंगे।
बहरहाल प्रदेश में योगी सरकार को बने अभी कुछ ही महिने हुए जिनपर सवाल उठाना उचित नहीं होगा लेकिन खोखली हो चुकी यूपी की शिक्षा व्यवस्था की एक भारी जिम्मेदारी उनके कंधे पर जरुर होगी...जिसे पूरा करने की नैतिक जिम्मेदारी योगी जी और उनकी सरकार की अवश्य होगी। 

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