Wednesday 14 September 2016

अनंत चतुर्दशी विशेष: बप्पा की विदाई का संबंध महाभारत से है

संदीप कुमार मिश्र: धार्मिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी से लेकर लगातार दस दिन तक महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत की कथा भगवान गणेश को सुनाई थी जिसे भगवान गणेश ने लिखा।
ऐसा कि कहा जाता है कि जब वेदव्यास जी महाभारत की कथा गणेश जी को सुना रहे थे तो उनकी आंखें बंद थी।जिस वजह से उन्हे पता ही नहीं चल पाया कि इसका गणेश जी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।जब दस दिन के बाद कथा संपन्न हुई और महर्षि ने आंखें खोली तो देखा कि दस दिन लगातार कथा सुनते-सुनते गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया है और गणेश जी को ज्वर हो गया ।फिर जाकर महर्षि वेदव्यास ने कुंड में ले जाकर गणेश जी को डुबकी लगवाई और खुब स्नान करवाया, जिससे उनके शरीर का ताप कम हुआ। इसीलिए कहा जाता है कि भगवान गणपति अनंत चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक सगुण साकार रुप में मुर्ति में स्थापित रहते हैं।जिसे गणपति उत्सव के दौरान हम अपने घर,आफिस,पंडाल में स्थापित करते हैं।
मान्यता ऐसी भी है कि भक्त अपनी मुराद पूरी होने के लिए गणेश जी के कान में अपनी इच्छा प्रकट करते हैं और दस दिन तक अपने भक्तों की इच्छाओं को सुनते-सुनते बप्पा के शरीर का ताप बढ़ जाता है,जिससे उन्हें शितलता प्रदान करने के लिए चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर गणपति को शितल किया जाता है।

एक बहुत ही रोचक जानकारी भगवान: गणेश जी के बारे में ये है कि भगवान गणेश के मयूरेश्वर स्वरुप के कारण उनके नाम के साथ मोरया लगाया जाता या कहा जाता है।एक कथा के अनुसार गणेश पुराण में ऐसा वर्णित है कि जब सिंधू नामक दानव का अत्याचार बढ़ गया था तब देवताओं ने भगवान गणेश का आह्वान किया।और सिंधू दानव का संहार करने करने के मयूर को भगवान गणश ने अपना वाहन बनाया और छह भुजाओं का अवतार धारण किया।तभी से इस अवतार की पूजा भगवान गणेश के साधक गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं।जिससे संपूर्ण वातावरण बप्पामय हो जाता है।
भगवान श्रीगणेश जी के संबंध में विशेष:-
गणों के स्वामी होने के नाते भगवान श्रीगणेश को गणपति कहते हैं
केतु के देव हैं श्रीगणेश
गणपतये संप्रदाय केवल गणेश जी की ही पूजा करता है जो मुख्यत: महाराष्ट्र में रहते हैं।
हाथी जैसा मुख होने की वजह से गणेश जी का नाम गजानन  है।
ऐसा वरदान मिला है भगवान गणेश जी को कि बगैर श्रीगणेश जी की पूजा के कोई भी कार्य संपन्न नहीं होगा। इसीलिए भगवान गणेश जी को आदिपूज्य देव कहा जाता है।
अनंत चतुर्थी महोत्सव को मनाने की शुरुआत 1893 में स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने देश की आजादी के लिए देस के युवाओं को एक करने के लिए की थी।
भगवान श्रीगणेश जी की लंबी सूंड महाबुद्दित्व का प्रतिक है।
शिवमानस शास्त्र में ऊं को पारिभाषित करते हुए लिखा गया है कि उपर का भाग गणेश जी का मस्तक,नीचे का भाग उदर,चंद्र बिंदू लड्डू,और मात्रा सुंड है।
कुछ शास्त्रों में ऐसा भी वर्णित है कि भगवान गणेश जी की एक बहन भी थी जिनका नाम अशोक सुंदरी था।
भगवान गणेश जी की पत्नी का नाम रिद्दि और सिद्दि है।लेकिन भगवान गणेश जी की पूजा ऋद्धि-सिद्दि के साथ नहीं माता लक्ष्मी के साथ की जाती है।
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना कर उनका विसर्जन किया जाता है।

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