Tuesday 5 April 2016

पीएम मोदी की सउदी अरब यात्रा के क्या हैं मायने..?

संदीप कुमार मिश्र: जब भी हमारे देश के प्रधानमंत्री विदेशी सरजमी पर कदम रखते हैं तो मायने जरुर निकाले जाने लगते हैं।मायने निकालना भी चाहिए,क्योंकि सवाल देश की साख का है।जिसे आगे बढ़ाना मुखिया यानी पीएम की जिम्मेदारी है।तीन देशों की यात्रा (ब्रसेल्स,अमेरिका,सउदी अरब) पर जब इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए तो चर्चाओं का बाजार भी गर्म हो गया,खासकर सउदी अरब की यात्रा को लेकर।क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में भारत और सउदी अरब के रिश्ते बेहद अहम होते गए हैं।
दरअसल इस समय विश्व समुदाय में आतंकवाद एक बड़ी भयंकर समस्या बनती जा रही है।और आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम में सउदी अरब कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सउदी अरब का दौरा न सिर्फ वहां से आने वाले 20 फीसदी क्रूड तेल, हज, उमराह और वहां बड़ी संख्या में काम कर रहे भारतीयों के कारण अहम है।साथ ही आतंक के जन्नत पाकिस्तान को घेरने के लिए भी सकारात्म और जरुरी कदम है।
आपको बता दें कि अबू हमजा उर्फ अबू जुंदाल आतंक का वह नाम है जिसके प्रत्यर्पण से भारत और सउदी अरब के रिश्तों की अहमियत सबके सामने आई। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि 26/11 के मुंबई हमलों का आरोपी, आतंकवादियों का हैंडलर माना जाने वाला यह शख्स लश्कर--तैय्यबा के लिए पैसे जमा करने के लिए तीन साल तक सउदी अरब में था। सउदी अरब से ही जुंदाल को ट्रैक किया गया और जून 2012 में उसका प्रत्यर्पण हुआ।
वहीं दिल्ली और बेंगलुरु में हुए हमलों के मामलों में भी तलाशे जा रहे इंडियन मुजाहिदीन के फाउंडिंग मेंबर फसीह मुहम्मद को सउदी अरब ने अक्टूबर 2012 में डिपोर्ट किया और दिल्ली एयरपोर्ट पर उसकी गिरफ्तारी हुई।साथ ही एक और आतंकी अबू सूफिया को दिसंबर 2015 में सउदी अरब ने भारत को सौंपा। दस साल से सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस को चकमा दे रहे हैदराबाद के मोहम्मद अब्दुल अज़ीज को भी सउदी अरब ने इसी साल फरवरी में भारत को सौंपा।इन वाक्यों से भारत और सउदी अरब की नजदीकी का अंदाजा आप लगा सकते हैं।
समय और आतंकवाद की मार ने दरअसल पिछले करीब 6 साल पहले भारत और सउदी अरब को काफी करीब ला दिया।जिसे पीएम मोदी ने और बल प्रदान किया। एक समय था जब सउदी अरब हमेशा पाकिस्तान के साथ ही कदमताल करता नजर आता था, लेकिन किंग अब्दुल्लाह के 2006 के भारत दौरे और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 2010 के रियाद दौरे में समझौते के बाद स्थिति तेजी से बदलने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सउदी अरब का दौरा न सिर्फ वहां से आने वाले 20 फीसदी क्रूड तेल, हज, उमराह और वहां बड़ी संख्या में काम कर रहे भारतीयों के कारण अहम है,बल्कि एक तरह से पाकिस्तान को घेरने के लिए भी बेहद जरूरी है। भारत हर तरफ से पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है- संयुक्त राष्ट्र में, यूरोपियन यूनियन में, सार्क में और इस कड़ी में सउदी अरब भी आता है।भारत और सउदी अरब के रिश्तों की गरमाहट का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस बार जब पीएम मोदी यात्रा पर गए तो भारत माता की जय के नारे भी वहां बखुबी लगे।
 अंतत: ऐसा भी नहीं है कि सउदी अरब पाकिस्तान से पूर्णत: किनारा कर लेगा।लेकिन यह भी सच है कि अपने ऊपर आतंक को लेकर लगते आरोपों के बीच रियाद ने कुछ देशों का संघ बनाकर आतंक से निबटने की शुरुआत की है और धारण बदलने की थोड़ी बहुत कोशिश भी। इस लिहाज से भारत के लिए जरूरी है कि वह जिस हद तक हो सके अपने रिश्ते मजबूत करे।आतंक को जड़ से खत्म करने के लिए अन्य मित्र देशों का सहयोग प्राप्त करे।कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी के सकारात्म पहल से आशा और उम्मीद तो बढ़ ही जाती है।

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