Monday 14 March 2016

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: समय के साथ भी,बदलाव भी

संदीप कुमार मिश्र:  जिस प्रकार से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विरोधी स्वयंसेवकों के खाकी पैंट का मजाक उड़ाया करते थे,उन्हें अपने रवैये मों अब जरुर बदलाव करना होगा क्योंकि अब संघ पहले जैसा नहीं नजर आएगा।
दरअसल राजस्थान के नागौर में संघ की तीन दिनों की बैठक के अंतिम दिन संघ महासचिव ने बाकायदा यूनिफॉर्म में बदलाव का ऐलान कर दिया। स्वयंसेवक अब नियमित शाखाओं में खाकी निकर के बजाए भूरी या कॉफी रंग की फुलपैंट पहन कर आएंगे। 90 साल से संघ की पहचान बनी खाकी निकर को समय के साथ बदल दिया गया। संघ ने भी माना कि समय के साथ बदलाव जरुरी है और होना भी चाहिए। संघ महासचिव भैय्याजी जोशी ने फैसले का ऐलान करते हुए कहा कि ''सामान्य जीवन में फुलपैंट चलती है और हमने उसे स्वीकार किया। हम समाज के साथ चलने वाले लोग हैं।''
गणवेश में बदलाव संघ की बदली सोच को भी दर्शाती है।आपको बता दें कि गणवेश में बदलाव की बात खुद संघ के अंदर से ही उठी। ये सच है कि संघ में लिए जाने वाले फैसले धीरे-धीरे और लंबे विचार-विमर्श के बाद होते हैं। निकर के बजाए फुलपैंट का ये फैसला होने में भी कई साल लग गए। स्वाभाविक है कि बदलाव बदले वक्त के साथ जरुरी है,जो कि संघ ने किया। 1925 में संघ की स्थापना के समय जब फूली हुई खाकी निकर यूनिफॉर्म में रखने का फैसला हुआ था तो वो उस वक्त की नजाकत थी। तब खाकी कमीज थी। चमड़े के फीतेदार जूते के ऊपर मुड़े खाकी मोजे पहनने की रवायत थी। स्वयंसेवक के हाथ में लाठी थी। सीटी रखना जरूरी था। चमड़े की लाल बेल्ट थी। और सिर पर काली टोपी। हिंदू समाज को इकट्ठा रखना और उसके चारित्रिक प्रशिक्षण के जिस मकसद से संघ चला शायद उसके लिए अनुशासन के साथ वेश-भूषा की जरूरत रही होगी।
लेकिन निरंतर बदलते वक्त के साथ सबसे पहले खाकी कमीज की जगह सफेद शर्ट ने ली। और भी तमाम तरह के बदलाव हुए।हाफ पैंट से फुल पैंट को भी इसी दिशा में बढ़ा हुआ कदम मानना चाहिए।
लेकिन संघ की नागौर में हुई बैठक में कुछ और भी बदलाव के संकेत दिए गए।दरअसल एक मुद्दा जो देश में इस समय जोरशोर से बढ़ रहा है वो है मंदिर में महिलाओं का प्रवेश।इस पर संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा उठाया। इसे व्यापक प्ररिप्रेक्ष्य में रखा गया। संघ ने कहा कि मंदिरों में प्रवेश में पुरुषों और महिलाओं में भेदभाव नहीं किया जाता था।इसका चलन बाद में शुरू हुआ।जिसे समाप्त करने के लिए आपसी बातचीत और सहमति की आवश्यकता है। संघ ने सामाजिक समरसता की बात की। हिंदू समाज को जोड़ने और छुआछूत से लड़ने के लिए संघ पहले ही एक गांव में एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान की बात कर चुका है। वहीं आरक्षण पर भी संघ ने अपनी बेबाक राय दी और कहा गया कि आरक्षण का लाभ समाज के कमजोर तबके को मिले। लेकिन अगर समाज के संपन्न और समृद्ध तबके इसकी मांग करेंगे तो ये ठीक नहीं है।यानि नागौर में संघ की बैठक का उद्धेश्य बहुआयामी था।
संघ समाज की बेहतरी के लिए सरकार को भी सलाह देती रहती है। सस्ती शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं तक सबकी पहुंच के बारे में नागौर की सभा में पारित संघ का प्रस्ताव यही दिखाता हैं।वहीं उच्च शैक्षणिक संस्थानों को राजनीतिक उठापटक का मैदान न बनने देने का संघ का निर्देश मौजूदा राजनीतिक माहौल से निकल कर सामने आया।
लेकिन साठ साल के कुशासन और भ्रस्टाचार की जनक रही कांग्रेस के नेता कुछ और ही राग आलाप रहे थे।दरअसल जिस समय नागौर में संघ देश की दशा और दिशा पर चिंतन कर रहा था, तभी राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद उसकी तुलना आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से कर रहे थे। संघ ने गुलाम नवी के इस बयान पर सवाल उठाया। और कांग्रेसी मानसिकता की सोच कहा।


अंतत: बदलाव जरुरी है जो समाजिक,मानसिक और बौद्धिक यानि बहुमुखी स्तर पर हो।जिसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निरंतर तत्पर है। 

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