Friday 8 January 2016

धर्म और सियासत का रिश्ता



संदीप कुमार मिश्र: अगर आप सियासत में आना चाहते हैं तो बेशक कुछ मुश्किलों को छोड़ दें तो मुद्दों की कमी नहीं है,जो आपको सियासत का नया सितारा जरुर बना देगी।खासकर हमारे देश में तो बहुत ही आसान है नेता बनना।क्योंकि नेतागिरी के लिए हमारे यहां किसी स्कूल मे जाने की जरुरत नहीं होती।ना ही कोई पैमाना होता है।हां अगर वंशवाद की जड़ से आप राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं तो थोड़ी आसानी होगी या फिर दस बीस पचास लफड़े में रहे हों तो भी अच्छा है,कुछ केस वगैरह लगे हों तो और भी अच्छा है।

अरे हां कुछ बातें और भी सहुलीयत दिलाती हैं राजनीति में आज के 21बीं सदी के भारत में।जैसे-सोसल मीडिया की थोडी जानकारी जरुर होनी चाहिए साथ ही कुछ सांप्रदायिक और मजहबी दंगों का रिकार्ड है तो सम्मान थोड़ा ज्यादा मिलेगा।क्योंकि तब आपका परिचय नहीं देना पड़ेगा और चैनलों के खोडी कैमरों के साथ-साथ बड़े बड़े लोग आसानी से आपको तवज्जों दिया करेंगे।क्योंकि इन लोगों को भी देस की गरीबी,बेरोजगारी,भूख और तड़प से सरोकार तभी तक होता है जब तक उसमें टीआरपी का रस हो,वरना ये मुद्दे तो उनके लिए बेकार ही हैं..ऐसे में ऐसे ही लोगों की पूछ होती है जो समय समय पर खबरों में रहना जानते हों।

भई अब तो नेता भी वो नहीं जो देश के लिए समर्पित हो...अब तो नेता वो है जिसके लिए देश समर्पित हो...माफ किजिएगा लेकिन लगता कुछ ऐसा ही है।क्योंकि मुद्दा चाहे कैसा भी हो राजनीति तो होगी ही।बात राष्ट्रहीत की हो,तो भी सियासत करने से हमारे नेता बाज़ नहीं आते हैं..खासकर चुनाव में तो क्या कहने...! मुद्दों की बाढ़ सी आ जाती है...।

अब देखिए ना...चुनाव दर चुनाव कैसे कैसे मुद्दे आते रहे हैं...गिनाने की जरुरत नहीं होगी आप को...क्योंकि वाट्सएप और एफबी का जमाना है,आप ना चाहें तो भी खबरें आप तक पहुंच ही जाएगी,किसी ना किसी ग्रुप में आपको शामिल कर ही लिया जाएगा।कई राज्यों के चुनाव में आपने देखा ही होगा कि किस प्रकार से और क्या-क्या मुद्दे बनाए जाते रहे हैं और वही मुद्दे चुनाव संपन्न होते ही शांत हो जाते हैं।जैसे तुफान के बाद आयी खामोशी।

देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में कई राज्यों में चुनाव होने हैं...तो ऐसे में कौन सी पार्टी कौन सा मुद्दा लपक लेती है...अब तो लपक झपक की राजनीति है भाईयों।जो जितना लपकेगा उसकी उतनी ही वाहवाही होगी।और फिर एक बार सत्ता मिल जाने के बाद क्या कहने।जो चाहिए जैसे चाहिए कर लिजिए,रोकता कौन है।

खैर राजनीति में एक पुराना सा नया तड़का है धर्म का...जो हर जगह फिट है...हर किसी के साथ फिट है...आज के जमाने में भी चुनाव आते-आते विकास का पैमाना धर्म के इर्द-गिर्द ही घूमने लगता है।सियासी हलकों में हलचल तेज हो जाती है,आरोप लगने और लगाने का सिलसिला शुरु हो जाता है...चाहे बेशक आरोप बेबुनियाद हों,उसका कोई आधार ना हो..लेकिन समाज में गर्मी तो बनी ही रहती है...जिसका लाभ कभी मिलता है कभी जनता की जागरुकता की वजह से नहीं भी मिलता है।लेकिन शानदार सियासत की धूरी रही है धर्म...।

आपसे और क्या कहूं भाईयों...लेकिन अपने मन की बात...अपना दर्द जरुर बयां करता हूं... दरअसल जन्म से लेकर आजतक अपने आसपास मर्यादापुरुषोत्म प्रभू श्रीराम जी की ही आराधना-साधना,भजन और किर्तन देखा सुना और उन्हीं को जाना।लेकिन जब होस संभाला तब जाना कि हमारे राम जी भी सियासी मुद्दे हो गए हैं हमारे नेताओं के लिए ।तभी तो हर बार सियासत की मुख्य धूरी में रहते हैं हमारे श्रीराम जी...।

अफसोस कि अपने ही घर में बेगाने से हो गए हैं हमारे श्रीराम जी,...नहीं भी...क्योंकि हमारे राम जी सियासतदां के लिए मुद्दा हो सकते हैं, लेकिन करोड़ों-करोंड़ो भारतीयों के लिए तो राम जी आराध्य हैं,इष्ट हैं,सब कुछ हैं राम जी,जीवन का आधार हैं और हमेशा रहेंगे...। 


2017 में उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने हैं...जिसके लिए पार्टीयां अबी से कमर कसनी शुरु कर दी हैं,साम-दाम-दंड़-भेद चाहे जैसे भी हो देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता चाहिए।मेरी एक ही गुजारीश है अपने सभी सियासतदां जन से...कि आप किसी से भी पूछेंगे तो हर कोई यही कहेगा कि हमारे रामलला को सियासत से परे रहने दें...और हर किसी के जीवन का एक ही उद्धेश्य है कि उसके जीतेजी रामलला का मंदिर अवश्य अवधदाम में बन जाएगा।इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है,लेकिन जब मामला माननिय न्यायालय में है तो कम से कम अदालत का सम्मान करते हुए इसे चुनावी मुद्दा मत बनाएं।करोंडों लोगो कि भावनाओं को आहत मत करें।इस देस की सम्मानित जनता सब जानती है...समय बदल गया है भूत से सीख लेकर वर्तमान की रणनीति ऐसी बनाएं कि भविष्य सुखद हो,ना कि आपलोगों के लिए दुखद...।

अंतत: देश एक भारत श्रेष्ठ भारत की दिशा में आगे बढ़ रहा है,विकास के नए-नए किर्तिमान गढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है,अच्छे दिनों की एक धुंधली सी झलक पश्चिम से नजर भी आने लगी है...उसे और बल तभी मिलेगा...जब विकास के पहिए को रोकने का किसी भी प्रकार के निरर्थक प्रयास पर विराम लगेगा...।क्योंकि देश को आगे बढ़ाने का सिर्फ और सिर्फ एक ही पैमाना है...विकास...विकास...और सिर्फ...विकास...।



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