Sunday 31 January 2016

दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट:सुलभ भी,उम्मीद भी,लेकिन जरुरत और भी

संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों कभी महज सौ मरीजो के लिए दिल्ली सरकार की ओर से बनाया गया दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट दिनों दिन बढ़ते मरीजों के बोझ से दबकर रह गया है।हालांकि यहां आने वाले मरीजों का इलाज अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों और दवाइयों से किया जाता है।लेकिन कैंसर के मरीजों की बढ़ती संख्या ने इस कैंसर संस्थान पर बोझ बढ़ा दिया है ।
दरअसल लोगों की बदलती दिनचर्या औऱ भागदौड़ भरी जिंदगी का ही नतीजा है कि देश भर में हर साल तकरीबन 10 से 12 लाख कैंसर के नए मरीजों का इजाफा हो जाता है।क्योंकि ज्यादातर लोगों को कैंसर की जानकारी तब होती है जब वह तीसरी या चौथी स्टेज में पहुंच जाता है। इससे मरीज के इलाज में काफी दिक्कत आती है।शायद यही वजह है कि ऐसी हालत में मरीजों को बचा पाना मुश्किल हो जाता है।
यही वजह है कि इस कैंसर इंस्टीट्यूट में दिल्ली की सीमा पर स्थित होने की वजह से मरीजों का बोझ लगातार बढ़ रहा है लेकिन उनके इलाज में किसी तरह की कोताही या लापरवाही संस्थान में ना के बराबर है,और जिसकी तस्दीक यहां आने वाले मरीज भी करते हैंहर रोज सैंकड़ो कैसर के मरीजों की आमद होती है जीटीबी परिसर में स्थित दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में। मरीजों के बढ़ते दवाब को देखते हुए मौजूदा चिकित्सा सुविधाएं कम पड़ती नज़र आती  हैं, लेकिन प्रशासन ने अभी अपने हाथ खड़े नहीं किए हैं
अत्याधुनिक कैंसर इंस्टीट्यूट
बटन दबाते ही खि़ड़कियों के पर्दे अपने आप खुलने और बंद होने लगते हैं।इस कमरे में लगी लाइटों को भी बटन दबाकर अपनी जरूरत के हिसाब से कम या अधिक किया जा सकता है।यहां तक कि कमरे के दरवाजे भी बटन दबाते ही आपका आदेश मानने को बाध्य हो जाते हैं।यह नजारा देखने को मिलता है दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में बनकर तैयार हुए चारों ऑपरेशन थियेटरों में।इन ऑपरेशन थियेटरों की खासियत यह है कि इन्हें कैंसर की खोज करने में अग्रणी रहे वैज्ञानिकों के नाम पर रखा गया है।इसी तरह से बोन मेरो ट्रांस्प्लांट और आईसीयू रूम को भी अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों से लैस किया गया है।
इन ऑपरेशन कक्षों के बाहर मरीजों के रिश्तेदारों के लिए प्रतीक्षालय भी बनाने की योजना है इन प्रतीक्षालयों को सीसीटीवी कैमरों से जोड़ा जाएगा ताकि मरीजों के रिश्तेदार अपने मरीज का ऑपरेशन थियेटरों में लगे कैमरे के जरिए ऑपरेशन होता देख सकते हैं। इस संस्थान को हर तरह की अत्याधुनिक सुविधा से लैस करने की जीतोड़ कोशिशें जारी हैं।
सरकारी अस्पतालों में आम तौर पर कैंसर का इलाज कराने के लिए आने वाले मरीजों औऱ उनके रिश्तेदारों की शिकायत होती है कि उनके रहने और खाने पीने की काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसी शिकायत करने वालों को दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में आकर अपनी यह धारणा बदलने को मजबूर होना पड़ सकता है
दिल्ली के सरकारी अस्पताल में रोजाना महज 2100 रुपए खर्च करके मरीज के लिए कमरा मिल सकता है वह भी प्राइवेट वार्ड में।जी हां यह असंभव सी लगने वाली बात दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में संभव है।इतना ही नहीं इस राशि में मरीज और उसके रिश्तेदार का खाना भी शामिल है।
इस सेमी प्राइवेट वार्ड के अलावा इलाज का खर्च उठा सकने वाले मरीजों के लिए भी सात रंगों से सजे कमरों और पांच सितारा होटलों के कमरो को मात देते अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित बेहतरीन कमरों का भी प्रबंध इस कैंसर संस्थान में किया गया जिसका रेट क्रमशः5100 और 9100 रुपए तकरीबन रोजाना है
मरीजों के रिश्तेदारो के लिए पिछले कुछ सालों से इस संस्थान ने धर्मशाला का भी प्रबंध कर रखा है जिसमें एक बार में 114 लोग ठहर सकते हैं।जहां डोरमेटरी के लिए पचास रुपए और हॉल के 35 रुपए रोजाना खर्च करने होंते हैं।इसके साथ ही रियायती दरों पर लोगों के लिए खाने का भी इंतजाम किया गया है
मरीजों और उनके रिश्तेदारों के ठहरने और खाने-पीने के अलावा ओपीडी के बाहर  मरीजों के बाहर बैठने के लिए दर्शक दीर्घा भी बनाई गई है। जहां एक साथ सौ से डेढ़ सौ लोग केवल बैठ सकते है बल्कि रियायती दरों पर अल्पहार का भी लुत्फ उठा सकते हैं
दोस्तों यहां कैंसर के मरीजों का इलाज कीमो थेरेपी से किया जाता है,अन्य अस्पतालों से डीएससीआई कुछ मायनों में अलग ही है।कीमो रूम में आकर नहीं लगता कि वाकई मरीजों का इलाज हो रहा है बल्कि यह अहसास ज्यादा होता कि कहीं भजन संध्या तो नहीं
जिस तरह से कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है, उसके लिए यह निहायत ही जरूरी हो गया कि समय रहते केवल इस बीमारी का पता लोगों को चल जाए बल्कि इसको जड़ से खत्म करने के लिए सटीक इलाज की व्यवस्था भी चिकित्सा संस्थानो में हो।अभी तक गुरूतेगबहादुर परिसर में चल रहे दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट ने किसी भी कैंसर पीड़ित मरीज को निराश नहीं किया है लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा ऐसा वादा संस्थान का प्रशासन नहीं करताप्रशासन की मजबूरी की वजह है इस संस्थान पर दिनों दिन बढ़ता बोझ
अभी इस संस्थान में दिल्ली एनसीआर से ही नहीं बल्कि देश के दूर दराज के क्षेत्रों से कैंसर के मरीज अपना इलाज कराने आते हैं।उनके मुताबिक हर रोज आठ सौ से हजार मरीजों का इलाज इस संस्थान में किया जा रहा है।इतने कम संसाधन में बेहतरीन इलाज के लिए वह अपनी टीम और समन्वय को देते हैं

दिल्ली में जिस तरह से लोगो का खान-पान और दिनचर्या बदल रही है उसे देखते हुए कैंसर की बीमारी पर काबू पाना फिलहाल दूर की कौड़ी नज़र आती है ऐसे में लोगों को कैंसर से इलाज की अत्याधुनिक सुविधाएं देश की राजधानी ही नहीं बल्कि अन्य हिस्सों में भी उपलब्ध कराना सरकारों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं।
अंतत: निश्चित तौर पर ऐसे अस्पतालों की आवश्यकता दिल्ली के साथ देश में भी है।जहां सुविधाओं के साथ-साथ आम जन के लिए सुलभ भी हो।क्योंकि हर किसी के लिए संभव नहीं है कि महंगा इलाज करवा सके।

No comments:

Post a Comment