Thursday 8 October 2015

विचारों की महत्ता


इस संसार में आने जाने वालों का तांता लगा हुआ है ।लेकिन कुछ लोग ही एसे होते हैं जिन्हें हम याद करते है,और इसके पिछे उनकी सुन्दर काया ही महत्वपुर्ण भुमिका नहीं अदा करती है बल्की उनकी विचारधारा उन्हे अजर अमर कर देती हैं । संसार में अधिकांश व्यक्ति बिना किसी उद्देश्य का अविचारपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं किन्तु जो लोग अपने जीवन को उत्तम विचारों के अनुरूप ढालते हैं उन्हें जीवन- ध्येय की सिद्धि होती है। मनुष्य का जीवन उसके भले- बुरे विचारों के अनुरूप ही बनता है। किसी भी कर्म की अच्छी शुरुआत हमारे विचारों से ही होती है। इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि चरित्र और आचरण का निर्माण विचार ही करते है। जिसके विचार जितने श्रेष्ठ होंगे उसके आचरण भी उतने ही पवित्र होंगे। जीवन की यह पवित्रता ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है और उसे जीवन पथ पर ऊंचाई की ओग अग्रसर करती है। वहीं अविवेकपूर्ण जीवन जीने में कोई विशेषता नहीं होती। सामान्य स्तर का जीवन तो पशु भी जी लेते हैं किन्तु उस जीवन का महत्त्व ही क्या जो अपना लक्ष्य प्राप्त कर सके।

मनुष्य के अन्तःकरण में भले और बुरे- दोनों प्रकार के विचार भरे होते हैं। अपनी इच्छा और रुचि के अनुसार वह जिन्हें चाहता है उन्हें जगा लेता है और जिनसे किसी प्रकार का सरोकार नहीं होता वे सुप्तावस्था में पड़े रहते हैं। जब मनुष्य सुन्दर विचारों में रमण करता है तो दिव्य- जीवन और श्रेष्ठता का अवतरण होने लगता है, सुख, समृद्धि और सफलता के मंगलमय परिणाम उपस्थित होने लगते हैं। ये बात सौ फीसदी सच है कि मनुष्य का जीवन और कुछ नहीं विचारों का ही प्रतिबिम्ब मात्र है। अतः विचारों पर नियन्त्रण रखने और उन्हें लक्ष्य की ओर नियोजित करने का अर्थ है जीवन को इच्छित दिशा में चला सकने की सामर्थ्य अर्जित करना। जबकि अनियमित, अनियोजित विचार का अर्थ है, दिशा- विहीन, अनियन्त्रित जीवन प्रवाह।
विचारों को उन्नत कीजिये, उनको मंगल मूलक बनाइये, उनका परिष्कार एवं परिमार्जन कीजिये और वे आपको स्वर्ग की सुखद परिस्थितियों में पहुंचा देंगे। विचारों का तेज ही आपको ओजस्वी बनाता है और जीवन संग्राम में एक कुशल योद्धा की भांति विजय भी दिलाता है। इसके विपरीत आपके मुर्दा विचार आपको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पराजित करके जीवित मृत्यु के अभिशाप के हवाले कर देंगे। जिसके विचार प्रबुद्ध हैं उसकी आत्मा प्रबुद्ध है और जिसकी आत्मा प्रबुद्ध है उससे परमात्मा दूर नहीं है।

विचारों को जाग्रत कीजिये, उन्हें परिष्कृत कीजिये और जीवन के हर क्षेत्र में पुरस्कृत होकर देवताओं के तुल्य ही जीवन व्यतीत करिये। विचारों की पवित्रता से ही मनुष्य का जीवन उज्ज्वल एवं उन्नत बनता है इसके अतिरिक्त जीवन को सफल बनाने का कोई उपाय मनुष्य के पास नहीं है। सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति से बड़ी शक्ति और क्या होगी?
ध्यान रखें विचार जोड़ने का कार्य करते हैं ना कि तोड़ने का । संसार में पाने के लिए बहुत कुछ है और खोने के लिए बहुत कम । पाने के लिए बहुत कुछ तो है लेकिन उम्र ही समयावधि बहुत कम है ।इसलिए समाज को कुछ देकर जाने की सोचें,और विचारों से बहुमुल्य,सुलभ और सरल समाज को देने के लिए और क्या हो सकता है।
संदीप कुमार मिश्र 

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