Monday 5 October 2015

मौज है गुरु नेतागिरी में

मौज है गुरु नेतागिरी में

नेतागिरी का भी अपना अलग ही मजा है,जितनी शिद्दत से नेता बनने के पहले शोर हंगामा करने का मजा है,उतना ही मौज नेता बनने के बाद है। हां ये बात सही है कि ये इतना आसान नहीं होगा लेकिन कोशिश करने में हर्ज ही क्या है। जी हां साब कुछ ऐसी हो सोच और सपने भी बुनते हैं लोग।वहीं देश की यूवा पीढ़ी ऐसी भी है जो नेतागिरी का स्वाद चखना तो चाहती है लेकिन द्वंद से पार पानें में उसे थोड़ी मुश्किल हो रही है। जब-जब देश में चुनाव होते हैं आपको चौराहे की नुक्कड़ पर पान की दुकान पर ये चर्चा जरुर सुनने को मिल जाएगी कि-अबकी बार तो भईया जोर आजमाईस करेगे ही,चाहे जो हो जाएइतना ही नहीं चढ़ाने और उतारने वाले भी खुब मिल जाएंगे।क्योकिं उन्हें भी तो पान की दुकान पर अपना मुंह रंगना है,और साब अगर भैयाजी चुनाव लड़ लिए तो चुनाव लड़ने से वोटों की गिनती होने तक बगरो बसंत है।रोज होली और रोज दिवाली।
आप दिहात के किसी चौक चौराहे पर चले जाएं और शाम के वक्त, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में।आपको सुनने में मिल जाएगा-मौज है गुरु नेतागिरी में जब गांव के खडंजे पर खड़ खड़ करते और कच्ची सड़कों पर धुल उड़ाते हुए नेता जी का सफारी काफिला आता है तो खेलावन से लेकर चुन्नुआ,मुन्नुआ तक देखते रह जाते हैं।वहीं जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए परकसवा माफ किजिएगा नाम प्रकाश है लेकिन गांव में तो एसे ही लोग बुलाते हैं और प्रकाश को भी परकसवा ना कहें तो उसे लगता है कि किसी और को बुलाया जा रहा है।परकसवा भी सोचता है काश-

अब पढ़े लिखे से का होई,अनपढ़ जब मौज मारी रहे,
जिनका तमीज ना बोलन की,मंचन पर भाषण झारी रहे
बप्पा हमका कुर्ता पायजाम,खादी का सिलवाई दे,
फिर झुठे सांचे भाषण भी,हमका देना सिखवाई दे      
फिर का अगीले चुनाव में करिब जुगाड़
एक टिकट हमें दिलवाई दे।

अब ऐसे तो नेतागिरी की पाठशाला थोड़ी बड़ी लंबी और कहीं कहीं थकाउ भी है लेकिन हां अगर ठान ही लिए हैं तो नेता बनने से आपको कोई नहीं रोक सकता।एक बात जान लिजिए कि अगर आप सचिव और संगठन मंत्री तक ही सीमित रहना चाहते हैं तो कोई बात नहीं लेकिन अगर चाहते हैं कि क्षेत्र की जनता सांसद जी और विधायक जी कहे तो और उससे भी आगे बढ़कर मंत्री जी तो मेहनत तो करनी पड़ेगी।
हमारा देश भारत बेहद भावुक लोगों का देश है। जहां झंडे और डंडे के लिए मरने-मिटने वाले लोग रहते हैंहमारे यहां प्रतीकों की राजनीति सुपरहिट रहती है। फलाने जी बहुत इमानदार आदमी हैं जी आटो वाले भी अगर थप्पड़ मार दें साब कुछ नहीं बोलते हैं बल्कि घर जाकर उसकी हौसला अफजाई करते हैं, ढिकाने जी ने बीच सड़क पर रुककर मूंगफली वाले से बात की, और ऊ हेलिकाप्टर वाले साहब ने तो झोपड़ी में रात गुजारी, हर बात की जनता चर्चा करेगी। नेतागीरी में तो एसा ही करना पड़ता है जी,जिसका प्रतीकात्मक महत्व हो।
इतना ही नही किसी खास अवसर पर या यूं कहें कि राष्ट्रीय दिवस के एक दिन पहले या बाद में भोंपू पर ये संदेश देना ना भूलें कि साफ सफाई और शांती बनाएं रखें। ये मोहल्ला आपका है, शहर आपका है, और देश आपका है । हां सबसे जरुरी कि इलाकाई पत्रकार को खबर करना ना भूलें क्योंकि खबर जो आलाकमान तक पहुंचानी है।
खैर नेतागीरी की जगह लगता है अब हर जगह हो गई है तभी तो शिक्षा का पाक और पवित्र महकमा हो,या फिर स्वास्थ्य का।हर जगह जुगाड़ की सियासत होती है,जिसकी जैसी पहुंच,उसका वैसा ही सम्मान और काम।काला कारोबार हो या सफेदी की चमकार, नेतागिरी के बगैर क्यों नहीं संभव हो पा रही ?यानी कि मौज तो है गुरु नेतागीरी में ।

अब साब भारत का मासुम भूखा सो रहा है तो क्या, लेकिन सुनते हैं इंडिया हमारा डिजिटल हो रहा है।जान लिजिए नेतागिरी करनी है तो डिजिटल होना पड़ेगा....तो इंतजार करिए अगले लेख का जहां नेतागिरी और राजनीति के टिप्स देने की एक और कोशिश करेंगे।अब भईया दिल पर मत लिजिएगा कोई बात,जो देखा,सुना,लिख दिया। मेरे इष्टमित्रों को इस पुरी बकवास में जो ठीक लगे उसके लिए धन्यवाद और जो बातें बुरी लग जाए उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी।आपकी प्रेरणा से और देशकाल में घटीत हो रहे नेतागिरी पर अगला लेख लिखने की कोशिश...मौज है गुरु नेतागिरी में-पार्ट 2 जल्द।।धन्यवाद   



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